रुकी हुई हैं कुछ बाते, लबो तक आते आते
की बातों का असर दिलो पे होते कुछ गहरा देखा है ,
कैद हैं कुछ ख्वाब जागती रात की इस वीराने में
की सपनो पर हमने अश्को का पहरा देखा है
बहुत हलचल है इसकी गहराई में
ऊपर से जिस पानी को तुमने शांत ठहरा देखा है ,
नाज था कभी जिन्हें अपनी उड़ानों पर
आज भटकते उन्हें हमने सहरा-सहरा देखा है,
वार दिए अपने सपने और खुशियाँ जिनकी परवरिश में
आज उन्ही संतानों को अपने माँ-बाप के बोझ से होते दोहरा देखा है,
नकारे किसको और किस पर यकीन करे
की हर रोज़ हमने नियति का एक नया चेहरा देखा है,
छंट जाएगी हर धुंध बस थोडा धीरज रख ऐ दोस्त
की हर काली रात के बाद होता एक सवेरा सुनहेरा देखा है
की बातों का असर दिलो पे होते कुछ गहरा देखा है ,
कैद हैं कुछ ख्वाब जागती रात की इस वीराने में
की सपनो पर हमने अश्को का पहरा देखा है
बहुत हलचल है इसकी गहराई में
ऊपर से जिस पानी को तुमने शांत ठहरा देखा है ,
नाज था कभी जिन्हें अपनी उड़ानों पर
आज भटकते उन्हें हमने सहरा-सहरा देखा है,
वार दिए अपने सपने और खुशियाँ जिनकी परवरिश में
आज उन्ही संतानों को अपने माँ-बाप के बोझ से होते दोहरा देखा है,
नकारे किसको और किस पर यकीन करे
की हर रोज़ हमने नियति का एक नया चेहरा देखा है,
छंट जाएगी हर धुंध बस थोडा धीरज रख ऐ दोस्त
की हर काली रात के बाद होता एक सवेरा सुनहेरा देखा है
-सोमाली
बहुत बढ़िया ।।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना बहुत-2 बधाई.
ReplyDeleteशब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/12/2012-6.html
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति:)
ReplyDeleteरुकी हुई हैं कुछ बाते, लबो तक आते आते
ReplyDeleteकी बातों का असर दिलो पे होते कुछ गहरा देखा है ,
Bahut Badhiya...
अच्छी पंक्तियां ....सच में समझ नहीं आता किस पर यकीन करें.....पर नया सवेरा आता है..पर कई बार रात इतनी गहरी हो जाती है कि इंतजार करते-करते आंखे बंद हो जाती है सोमाली जी।
ReplyDeleteकाव्य के शीर्षक में सुनहरा शब्द ठीक कर लें...